कमरे की दीवारों पर अब कोई तस्वीर नहीं है।
कल तक जो हँसी गूंजती थी,
आज सन्नाटा उसे निगल गया है।
किताबें खुली हैं,
पर शब्द थमे हुए हैं—
जैसे समय वहीं रुक गया हो
जहाँ तुमने आखिरी बार देखा था मुझे।
खिड़की से आती धूप अब चुभती है,
तुम्हारे बिना यह उजाला भी बोझ लगता है।
चाय का प्याला ठंडा हो गया है,
जैसे मन के भीतर भी सब जम गया हो।
कोई आवाज़ नहीं देती अब मुझे मेरे नाम से,
सिर्फ घड़ी की टिक-टिक
हर पल याद दिलाती है
कि तुम अब यहाँ नहीं हो।
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